इन ठंडी ठंडी हवाओं ने फिर से पुकारा मुझे,
जिसे भूलने की जिद में दिन रात तड़पता रहा,
उसकी बांहों ने ही दिया आखिर सहारा मुझे...
बरसो बहता रहा जिस्म मेरा प्यार के दरिया में,
उनसे मिलकर ऐसा लगा के मिल गया किनारा मुझे...
यूँ तो आने को आयी बहारें मेरे भी घर में,
पर उनका साथ लगा बहारो से भी प्यारा मुझे...
यूँ तो हर राह थी अँधेरी मेरे सफ़र की,
उस हमसफ़र से मिला हर राह पर सितारा मुझे...
उसके बिन हर गुलशन के फूल खामोश हो गए,
वरना दिखता था कांटो में भी क्या खूब नज़ारा मुझे...
By- Raghav Singh