मेरे होठों की मुस्कराहट को देखा उसने,
आँखों का गम देखा ही नहीं |
मेरी पलकों के हर ख्वाब को तोड़ा उसने,
दिल का दर्द सुना ही नहीं |
मेरी तन्हाई को नज़र-अंदाज़ किया उसने,
मेरी साँसों का टूटना पता ही नहीं |
मुझे हर वक़्त खुद से दूर रखा उसने,
पर वो कभी मुझसे जुदा ही नहीं |
ढेर सारे जुल्म किये मुझ पर उसने,
पर एक पल को मैं उससे खफा ही नहीं |
एक अरसे के बाद मुझे याद किया उसने,
मेरे लब्जो पे फिर भी कोई गिला ही नहीं |
मेरी बातो से समझा मैं खुस हूँ उसने,
मेरी आवाज़ का रुकना पता ही नहीं |
अपनी ख़ुशी में मेरा हाल तक न पूछा उसने,
उसी ख़ुशी की खातिर मैंने कुछ कहा ही नहीं |
जिसके लिए गुज़ार दी तमाम ज़िन्दगी तन्हा अकेले,
मुझे मिला ही नहीं ... उसे पता ही नहीं ||
By- Raghav Singh