बेनाम सा ये दर्द, ठहर क्यों नहीं जाता |
जो बीत गया वो, गुजर क्यों नहीं जाता ||
सब कुछ तो है, क्या ढूढती हैं निगाहें |
क्या बात है मैं, वक़्त पे घर क्यों नहीं जाता ||
वो एक ही चेहरा तो नहीं, सारे जहां में |
जो दूर है वो, दिल से उतर क्यों नहीं जाता ||
मैं अपनी ही उलझी हुयी राहों का तलाशा |
जाते हैं जिधर सब, मैं उधर क्यों नहीं जाता ||
वो याद न आये एक पल, मुमकिन नहीं |
क्यों उसके बिन, जीने में मज़ा नहीं आता ||
जानता है दिल मेरा, वो नहीं हाथ की लकीरों में |
फिर किस्मत बदलने का ख्वाब, दिल से क्यों नहीं जाता ||
By- Raghav Singh